Saturday, December 6, 2008

इंसान पागल की तरह बेतहाशा भाग रहा है।


उन्होंने यहां पर महात्मा का वेश धारण किया। राजसी वस्त्रों और मुकुट को उतार कर परीक्षित को राज्य दिया। द्रोपदी को साथ लिया, मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र प्रदुम्न, उनके पुत्र अनिरुद्ध और उनके एकमात्र पुत्र बज्रनाभ थे, उनको मथुरा का राज्य दिया। फिर सन्यास लेकर उन्होंने उत्तराखण्ड में द्रोपदी सहित स्वर्ग को प्राप्त किया, परमपद को प्राप्त किया।

शौनक! हम सब सोचते हैं कि हम अपने लिए या अपनों के लिए जी रहे हैं परन्तु ऐसा नहीं है। हम न अपने लिए जी रहे हैं और न किसी और के लिए जी रहे हैं। बस मन में एक बैचेनी है, एक तृष्णा है, एक भटकन है, एक पागलपन है, एक चाह है, जिसके पीछे इंसान पागल की तरह बेतहाशा भाग रहा है।

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