Thursday, October 30, 2008

श्रीमद भागवत कथा अंक 16

अरे! चमक से तो बाग के बाग उजड़ गए। तुम्हारी बु(ि का क्या कहना। कोई भी चमक बैठ गई है, तो आदमी चोरी करेगा, कुकर्म करेगा, पाप करेगा, इन्सानियत नहीं करेगा। किसी के दिमाग़ में कुर्सी की चमक है तो उनतकमत, अपहरण करवाएगी, चोरी, डकैती, बदमाशी, लूट-खसोट। समाज में झगड़े किसके हैं? कुर्सी के? कौन करवाते हैं? नेता। यदि ये नेता सुधर जाएं तो संसार में राम राज्य आ जाए। अमेरिका में झगड़ा किसका है? कुर्सी का। ईराक़ में? कुर्सी का। अफगानिस्तान, पाकिस्तान बांग्लादेश में? कुर्सी की वजह से। जम्मू कश्मीर में? कुर्सी। असम और उ. प्र. में? कुर्सी का। अगर कुर्सी पर राक्षस बैठा दिया जाए तो समझो सत्यानाश है। जितने भी नेता हैं उनमें से ९८ः राक्षस हैं। तो कहते हैं कि मनुष्यों की सृष्टि नहीं हो सकती। जानवरों की है, राक्षसों की है, असुरों की है, यही रहेगी। जितनी भी पार्टी बन रही हैं, सब कुर्सी के लिए ही लड़ झगड़ रही हैं, मर रही हैं। कुर्सी के लिए कुकर्म, भ्रष्टाचार कर रही हैं। सबके सब राक्षस हैं। आप कहते है 'मनुष्यों की सृष्टि करो'। कैसे करूँ? ब्रह्माजी भी कहने लगे कि हाँ, अब मनुष्य तो रह ही नहीं गए सिर्फ राक्षस रह गए हैं, हिरण्याक्ष रह गए हैं। सबके दिमाग़ में चमक भर गई है, जो भी पार्टी आती है। किसी भी पार्टी में चरित्र नहीं रह गया। जो भी सरकार आती है उसका चरित्र देखा जाता है पर आज चरित्र तो रह ही नहीं गया है नेताओं का। अब कर्म भी नहीं रहा। सब के सब अंधेरे में पाप कर रहे हैं, छुप कर पाप कर रहे हैं। कल तक ये मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर नहीं था, आज तो ये सोने का मुकुट लेकर चलता है। कल तक ये नेता नहीं था, सड़क छाप था अब नेता बन गया है। अब दुनियाँ भर की सोने की अंगूठी, जंजीरें लादकर चलता है। कल तक ये सड़क छाप था, आज तो लखपति हो गया है। कल तक ये लड़की आवारा थी, कोई पूछता नहीं था। आज तो सूबे की मन्त्री हो गई है।

श्रीमद भागवत कथा अंक 15

जैसे पानी से लहर पैदा होती है, पर अलग दिखती है। ऐसे ही जगत परमात्मा से उत्पन्न होकर दिखता है।
'मैं' कौन हूँ, इसको जानने के लिए, पहले जानो कि मुझे क्या करना है?
अपने-अपने कर्त्तव्य को पकड़ लें तो भगवान तो दूर हैं ही नहीं।
;............ गतांक से आगे क्रमशः........... फिर ब्रह्मा जी के चार मुखों से चार वेद, चार उपवेद, चार वर्ष, चार आश्रम, चार प्रकार के जीव, चार तरह की वाणी, चार प्रकार के प्राणी, चार चरण धर्म के, पाँच प्रकार के प्राण और हृदय से ओंकार उत्पन्न हुआ। शरीर के बाएं भाग से शतरूपा स्त्री तथा दाएं भाग से स्वयं भू मनु को उत्पन्न किया। स्वयं भू मनु तथा शतरूपा का विवाह हुआ। पाँच सन्तान हुई- प्रियव्रत तथा उत्तानपाद उनके दो पुत्र तथा आहूति, देवहूति तथा प्रसूति तीन कन्याएं हुईं। आहूति का विवाह रूचि प्रजापति से हुआ जिनसे यज्ञ और दक्षिणा का जन्म और विवाह हुआ। देवहूति का विवाह कर्दम ऋषि से हुआ, जिसके गर्भ से उत्पन्न हुए कपिल भगवान। जिन्होंने माँ को सांख्य का उपदेश करके मुक्त किया। प्रसूति दक्षिण प्रजापति ब्याही गईं जिनकी संतानों से ये सारा का सारा संसार भर गया। मनु महाराज कहने लगे कि मैं सृष्टि कैसे करूँ? परीक्षित के मनु सृष्टि विषयक प्रश्न पूछने पर सुकदेव जी ने बताया कि यह प्रश्न मनु महाराज ने ब्रह्मा जी से पूछा कि मानवीय सृष्टि किस प्रकार हो? मैथुनी सृष्टि, स्त्री तथा पुरुष के द्वारा सृष्टि कैसे होगी? ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम मनुष्यों की ही सृष्टि करो। क्योंकि मनु ने कहा कि हिरण्याक्ष धरती को अंधेरे में ले गया है, पाताल में ले गया था, नीचे को।
हिरण्याक्ष कहते हैं 'चमक' को। बुद्धि कब नीचे को जाती है? जब उसमें कोई चमक बैठ जाती है। बुद्धि में किसी की कोई चमक बैठ गई तो समझो गई नीचे। छुप करके कैसे भी उस चमक को पूरा करना चाहेगी। चमक नींबू पर लग जाए तो नींबू मर जाता है। आम पर लग जाए तो आम मर जाता है, नीम पर लग जाए तो नीम मर जाता है। जब दरख्त के दरख्त मर जाते हैं चमक से तो तुम्हारी बुद्धि कितनी बड़ी है।