Friday, January 30, 2009

साधु नेताओं के चक्कर काटे तो समझो सब गड़बड़ है।


सती ने शंकर जी से कहा तो उन्होंने सती को समझाया कि देखो नेताओं के यहाँ साधु महात्माओं को चक्कर नहीं लगाने चाहिए। हाँ नेता अगर साधु नेताओं के चक्कर काटे तो भली बात है लेकिन साधु नेताओं के चक्कर काटे तो समझो सब गड़बड़ है। और फिर तुम्हारे पिताजी तो हमसे विरोध भी मानते हैं।

जदपि विरोध मानि......................... वहाँ गए कल्याण न होई।

Wednesday, January 28, 2009

उन्हें कोई लेना देना नहीं।

कुर्सी का मद ऐसा हुआ कि उन्होंने एक यज्ञ किया जिसमें साधु-महात्मा शंकर जी को नहीं बुलाया गया। नेताओं के यहाँ ज्ञानी-ध्यानी की कीमत नहीं है, वहाँ तो बस जो नोट दे - वोट दे उसी की कीमत है। नेताजी तो बस आपके नोट और वोट देखेंगे बाकी वो ये नहीं देखेंगे कि आप कितने बड़े ज्ञानी ध्यानी हैं। उससे उन्हें कोई लेना देना नहीं। सती को भी नहीं बुलाया। सती है- गंगा गए तो गंगादास जमुना गए तो जमुनादास बिना भरोसे वालों को भी नहीं बुलाते नेता जी। सती को नहीं बुलाया क्योंकि वो है-चंचल उन पर भरोसा नहीं कि वो उनके सुर में ही सुर मिलाऐंगी। और सबको बुलाया-साधु महात्माओं को नहीं बुलाया- बिना भरोसे वालों को भी नहीं बुलाया।

Saturday, January 24, 2009

नन्दी महात्मा से ये चापलूसी बर्दाश्त नहीं हुई।

तो भक्त से - नन्दी महात्मा से ये चापलूसी बर्दाश्त नहीं हुई। द्विज कुल को उन्होंने श्राप दे दिया कि ये सब सर्वभक्षी होंगे, तो ब्राह्मण जो भी च+ीज स्वाद की होगी उसे ये नहीं देखेंगे कि इसे खाना उचित है अथवा अनुचित सब का भक्षण करेंगे। और धन के या इन्द्रियों के गुलाम होकर घर-घर भीख माँगते भटकते फिरेंगे। श्रीमद्भागवत्‌ में द्विज कुल को नन्दी ने इतना भयंकर श्राप दे दिया। ये मृगु से बर्दाश्त नहीं हुआ उन्होंने भी श्राप दे दिया कि जितने भी शंकर के मानने वाले शरीर होंगे वे सब अमंगल वेश धारण करने वाले होंगे। एक तरफ से श्राप दूसरी तरफ से भी श्राप। शंकर जी दुःखी हुए वहाँ से चले गए। ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति का और च्तवउेजपवद कर दिया और भी अहंकार हो गया, अति पति बना दिया प्रजापति की जगह। जब नेता जी की कुर्सी बढ़ गई तो अहंकार भी बढ़ गया। नेताओं में नहीं कुर्सी में अहंकार होता है कुर्सी में मद होता है।

Tuesday, January 20, 2009

ज्ञानी के भक्त होते हैं नेताओं के पास चापलूस होते हैं।

तो दक्ष प्रजापति के चापलूस राजा लोग भी शंकर भगवान का अपमान करने लगे कुछ ऐसा वैसा कहने लगे, तान फाड़ने लगे। तो शंकर जी के वाहन नन्दी जी से ये बर्दाश्त नहीं हुआ। तो शंकर कहते हैं ज्ञानी को और नन्दी कहते हैं भक्त को। तो ऐसे चापलूसों की हरकतों को भक्तगण कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।

ज्ञानी के भक्त होते हैं नेताओं के पास चापलूस होते हैं। नेताओं की नेतागीरी सलामत है, तो चापलूसों की चापलूसी सलामत है परन्तु जहाँ नेताओं की कुर्सी ज+रा खिसकी तो चापलूस दुम दबाकर के खिसके। "चापलूस भाई किसके दुम दबाकर खिसके ये न उसके, न इसके।''

Saturday, January 17, 2009

सबसे गिरा हुआ आदमी अगर ढूँढना है तो नेता को पकड़ो।

इन नेताओं को सही गलत धर्म-अधर्म से मतलब नहीं है। तभी तो ये नेता साधु महात्माओं से सम्बंध नहीं रखते हैं, कथाओं में नहीं आते। सबसे मक्कार होता है नेता। सबसे गिरा हुआ आदमी अगर ढूँढना है तो नेता को पकड़ो। जितना बड़ा नेता होगा उतना ही गिरा हुआ होगा।

हरे रामा! हरे रामा! रामा रामा हरे हरे।

हरे कृष्णा! हरे कृष्णा! कृष्णा कृष्णा हरे हरे॥

नेताओं के जो चापलूस होते हैं जो चिल्लर होते हैं वो और भी अधिक खतरनाक होते हैं। नेता जी अगर कुछ सही करना भी चाहें तो ये चिल्लर चापलूस ऐजेन्ट नहीं करने देते हैं।

Thursday, January 15, 2009

इतिहास में जितने भी झंझट हुए सब नेताओं ने ही करवाए।

शंकर जी थोड़ा खराब तो लगा परन्तु उन्होंने कुछ भी कहा नहीं। यज्ञ में उपस्थित अन्य राजा व देवतागण दक्ष प्रजापति की चापलूसी करने लगे। दक्ष कहते है नेता को। नेता वो जो नेतृत्व करे। पर इन नेताओं को सही है या गलत इससे कोई मतलब नहीं होता, इनका अहंकार बहुत होता है। सही गलत नहीं सोचते बय इनकी बदनामी होनी चाहिए। ये जितने भी झगड़े आज तक हुए हैं इनके पीछे ये नेतागण ही तो हैं। इतिहास में जितने भी झंझट हुए सब नेताओं ने ही करवाए। समाज यदि शान्ति से है, तो इन नेताओं को कौन पूछे? समाज में जब झगड़ा है, झंझट है तभी तो नेताओं को लोग पूछेंगे उनके चक्कर काटेंगे। तो ये नेता तो चाहते ही नहीं कि समाज में शान्ति हो। वे तो चाहते हैं कुछ न कुछ खटपट होती रहे और लोग उन्हें पूछते रहें। पूछ और मूँछ दोनों लम्बी होती रहे। कभी जाति का, कभी धर्म का कोई न कोई झगड़ा लगाए ही रहते हैं।

Tuesday, January 13, 2009

विवाह अंश-वंश देख कर ही करना चाहिए।

दक्ष प्रजापति जब प्रविष्ट हुए तो सभी देवतागण खड़े हो गए पर ब्रह्मा व शिव जी नहीं खड़े हुए। दक्ष प्रजापति बोले कि ब्रह्मा जी तो चलो मेरे पिता हैं, नहीं खड़े हुए। पर यह शंकर तो मेरा दामाद है, बेटे के समान है इसने खड़े न होकर अपनी धृष्टता का परिचय दिया है-गँवार है यह। इसका अंश वंश कुल खाता रंग रूप कुछ भी तो नहीं है। ब्रह्माजी के कहने पर मैंने इस बिना कुल वंश वाले इस भूतनाथ को अपनी बेटी दे दी। सही है विवाह अंश-वंश देख कर ही करना चाहिए। ऐसा नहीं करने के कारण ही तो मेरा अपमान हो गया। दक्ष प्रजापति ने उन्हें बहुत बुरा भला कह कर यज्ञ से वंचित भी कर दिया।

Sunday, January 11, 2009

विष्णु भगवान शान्ति चाहते हैं।

मैत्रेय )षि विदुर जी को बताने लगे- बहुत पुरानी बात है एक बार प्रजापतियों का उत्सव हुआ उसमें सब पधारे परन्तु उसमें विष्णु भगवान नहीं पधारे। विष्णु भगवान शान्ति चाहते हैं। गृहस्थी में शान्ति नहीं होती। कुछ न कुछ खटपट लगी ही रहती है तभी तो तुम सब यहाँ आए हो। खटपट छोड़ कर आए। विष्णु वहाँ नहीं थे, शंकर है- तमोगुण है, ब्रह्मा हैं- जो गुण है। सब देवता हैं- सभी इन्द्रियाँ है, मन है, प्राण है, बु(ि है, शक्ति है, पर शान्ति नहीं है, संतोष नहीं है विष्णु भगवान नहीं हैं।

Saturday, January 10, 2009

दक्ष प्रजापति की पुत्री उन्हीं के यज्ञ में समाप्त हो गई।

फिर उसके पश्चात्‌ मनु महाराज की तीसरी पुत्री थी- प्रसूति, जो दक्ष प्रजापति को ब्याही गईं, उनके सोलह सन्तानें हुई। उनमें से सबकी सन्तानें हुईं परन्तु बस एक शंकर को ब्याही गईं सती ही बिना सन्तान उत्पन्न किए दक्ष प्रजापति के यज्ञ में ही भस्म हो गईं। उनकी तेरह कन्याऐं को ब्याही गईं। सबको सन्तानें हुई बस उन्हीं को नहीं। कहते हैं दक्ष प्रजापति तो अपनी पुत्रियों को बेहद प्रेम करते थे, फिर ऐसा कैसे हुआ की उनकी पुत्री उन्हीं के यज्ञ में समाप्त हो गई।

Thursday, January 8, 2009

धीरे-धीरे अभ्यास करने से चित्त के सारे के सारे आवरण हट जाते हैं


इस तरह धीरे-धीरे अभ्यास करने से चित्त के सारे के सारे आवरण हट जाते हैं, मल विक्षेप नष्ट हो जाते हैं। ज्योतिष्मात्री और श्लोक रहित बुद्धि की प्राप्ति होती है, विवेक प्राप्त होता है। तब तो आत्मा से मुक्त होकर आत्मा में स्थित होता है। अनात्मा का आवरण के हटने पर आत्मा से ज्योति से प्रदीप्त होता है। हे माँ! जो ऐसा नहीं करता है वह पुनः-पुनः जन्म मृत्यु को प्राप्त होता है और नाना योनियों में भटकता है, नरकों में जाता है।

"पुनरपि जन्मम्‌ पुनरपि मरणम्‌।''

ये उपदेश दिया। माँ ने अपने पुत्र के चरण वन्दन किए। कपिल मुनि ने माँ से विदाई ली समुद्र पर आए, चरण पखारे समुद्र ने वहीं गंगासागर पर भगवान रहने लगे। माँ ने अपने शरीर को धर्मपूर्वक पूर्ण करके मुक्ति प्राप्ति की। पुरुष और प्रकृति के विवेक से योग और भक्ति पूर्वक मुक्ति के उदाहरण को आपने सुना।

Sunday, January 4, 2009

जिसमें दिमाग़ लगाना पड़ता है वही बात करो

ब्रह्मा जी ने देखा कि इनकी सृष्टि तो आपस में झगड़ा कर रही है, तो बोले ''बेटा! जिस घर में झगड़ा हो, वह घर छोड़ देना चाहिए।'' तो शमशान में बैठ गए और आत्म चिन्तन करने लगे। फिर ब्रह्मा जी ने मानसी सृष्टि की। जिसमें वाणी की देवी सरस्वती उत्पन्न हुईं। अपनी मानसी पुत्री पर ब्रह्मा जी मुग्ध हो गए, मोहित हो गए। सरस-रसीली.... सरस्वती पर। ब्रह्मा कहते हैं-बुद्धि को। बुद्धि अगर रसीली बातों में घूमी हुई है, तो समझो बर्बाद है। दूसरा तरीका पकड़ा। जिसमें दिमाग़ लगाना पड़ता है वही बात करो, वही बात सुनो और जिसमें दिमाग़ नहीं लगाना पड़ता वो बात छोड़ दो, वो गति छोड़ दो।

Saturday, January 3, 2009

तीन चीजों के लिए रोता है आदमी

तीन चीजों के लिए रोता है आदमी- एक नाम के लिए, एक जमीन के लिए, एक ब्याह के लिए। तीन ही तरह के रोने हैं। रुद्र भगवान भी रोए, बोले मुझे नाम दो, जमीन दो और मेरा ब्याह करो। तो उन्हें ग्यारह नाम दिए गए, ग्यारह स्थान दिये और ग्यारह शक्तियाँ दी गईं। जमीन के लिए जो रो रहा है वह साधु नहीं है, मान के लिए या स्त्री के लिए रो रहा है वो भी साधु नहीं। जिसने नाम, जमीन और स्त्री तीन चीजों की पकड़ छोड़ दी, वह सन्त हो गया।

Friday, January 2, 2009

जो किसी से जकड़ा हुआ नहीं है, वही साधु है

अपने दिमाग को जितना खाली रखोगे, उतने ही धर्मात्मा होते जाओगे। यही रुद्र भगवान का कहना है। जगह को खाली नहीं छोड़ोगे तो रोओगे, पछताओगे। झगड़ा किसका? जगह को भरने, पकड़ने का ही तो झगड़ा है। कोई कुर्सी चाहता है, कोई जमीन, कोई मकान को जकड़ना चाहता है, पकड़ना चाहता है। इसी से सारी क्लेष है। साधु कौन है? जिसने किसी को पकड़ा हुआ - जकड़ा हुआ नहीं है। जो किसी से जकड़ा हुआ नहीं है, वही साधु है और नहीं तो स्वादु है।