Friday, February 27, 2009

ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं को पुत्र रूप में प्राप्त किया।

सुन्दर और निष्कपट बु(ि तथा निश्छल कर्म। हे! परीक्षित इसी से पति पत्नी का सम्बन्ध सुन्दर बनता है। फिर उनको नौ कन्याऐं हुईं, नौ कन्याओं का विवाह उन्होंने नौ )षियों के साथ किया। इन्हीं में एक अनुसूया थीं, जो अत्रि rishi को ब्याही गईं। जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं को पुत्र रूप में प्राप्त किया। इनमें से विष्णु ने दत्तात्रेय भगवान के रूप में अवतार लिया। ब्रह्माजी चन्द्रमा नाम के rishi बने तथा शिव जी दुर्वासा नाम के )षि बने। परीक्षित, दसवें कपिल का अवतार हुआ। ब्रह्माजी ने देवहूति से कहा कि बेटी, तुम्हारे गर्भ से जो कपिल अवतार जन्म लेंगे वो सांख्य के प्रणेता होंगे तो तुम घर में रह कर ही उनसे सांख्य का उपदेश लेकर ज्ञान प्राप्त कर सकती हो। देवहूति ने उनकी बात को ध्यान में रखा। साधु की और शास्त्र की बात को ध्यान में रखने से ही आदमी ज्ञानी बनता है। लेकिन हमें शास्त्र की और संतों की बात याद नहीं रहती इसीलिए तो हम भटक गए हैं। क्यों भटक गए हैं, इसलिए भटक गए क्योंकि न तो हमने ज्ञान को महत्व दिया न शास्त्रों का अध्ययन किया और न संतों की बातों को सुनने की फुरसत है।

Wednesday, February 25, 2009

दिव्य वसन भूषण पहिराए।

पति को बढ़िया कपड़े तथा बढ़िया श्रृंगार से नहीं रिझाया जा सकता। बढ़िया कपड़े पहनना, श्रृंगार करना ये तो नाचने गाने वाली भी कर लेती हैं, पर वो रिझाने वाली नहीं होती। प्यार से और धर्म से जीत जो होती है तो मजबूत होती है, टिकाऊ होती है। बिन्दुसर में स्नान करने के बाद वहाँ दिव्य कन्याओं ने उन्हें दिव्य आभूषण तथा वस्त्र धारण करवाए। परीक्षित, दिव्य माने पवित्र आचार विचार, पवित्र आचार विचार से पत्नी बनती है। सुन्दर कीमती वस्त्र आभूषण धारण करने से नहीं। तो दिव्य का अर्थ पवित्र आचार विचार।

दिव्य वसन भूषण पहिराए।

जे नित हू तन अंगन सुहाए॥

Saturday, February 21, 2009

पति-पत्नी के हृदय में प्रेम है तो गृहस्थ है।

दोनों का विवाह हुआ। बारह वर्षों तक देवहूति ने उनकी सेवा की। उसके उपरान्त कर्दम )षि ने उनके लिए एक विमान बनाया। विमान मतलब जहाँ न ऊँच हो न नीच हो। विमान का अर्थ ये मत समझ लेना कि कोई हवाई जहाज बनाया। विमान बनाने का अर्थ- ऊँच-नीच से मुक्त होना- जहाँ समानता हो बराबरी हो। जहाँ मान-सम्मान बीच में आ जाए वहाँ पति-पत्नी का रिश्ता नहीं रह जाता। विमान माने प्यार। पति-पत्नी के हृदय में प्रेम है तो गृहस्थ है। जहाँ पति-पत्नी की अपनी-अपनी अकड़ है वहाँ गृहस्थ है ही नहीं वहाँ तो सिर्फ नाटक है नौटंकी है। तो विमान वह जहाँ कोई भी अभिमान पति को नहीं है, कोई भी अभिमान पत्नी को नहीं है। उसमें विहार करते हुए फिर उन्होंने बिन्दुसर में स्नान करने की आज्ञा दी। ऊँच नीच नहीं होनी चाहिए पति पत्नी के बीच। प्यार हो दोनों के बीच तो धर्म स्वयं ही बन जाता है और जहाँ प्रेम नहीं वहाँ कुछ नहीं रह जाता अधर्म ही अधर्म बन जाता है। या समझिए कि प्यार होगा तो धर्म जरूर होगा या फिर यदि धर्म है तो प्यार जरूर होगा। यदि पति पत्नी के बीच कोई शक-शुबह है तो धर्म नहीं है, वहाँ पर, क्योंकि प्यार नहीं है तकरार है। वहाँ सिर्फ नाटकबाजी है। धर्म के साथ प्यार और प्यार के साथ धर्म होता है। बिन्दुसर-प्यार होगा तो धर्म होगा। प्यार ही बिन्दुसर है और धर्म ही बिन्दुसर है।

Thursday, February 19, 2009

मनुष्य का जन्म मुक्ति के लिए मिला है।


ये मैंने तुम्हें बताया। परीक्षित महाराज कहने लगे, कि कृपा कर मुझे महर्षि कर्दम के जन्म कर्म के विषय में, उनके गृहस्थ के विषय में बताइए। तो कहा कि महर्षि कर्दम पर्वत के ऊपर तपश्चर्या करते थे। भगवान के आदेश पर उन्होंने मनु की पुत्री देवहूति से विवाह किया। लेकिन उन्होंने मनु के सामने एक शर्त रखी, कि मनुष्य का जन्म मुक्ति के लिए मिला है। गृहस्थ होता है केवल वंश चलाने के लिए और वंश चलता है एक संतान से। तो जब भी एक पुत्र हो जाएगा मैं सन्यास ले लूँगा। यदि तुम्हारी पुत्री को यह मंजूर है तो मैं उससे विवाह करने को तैयार हूँ। देवहूति ने कहा मुझे भी पति चाहिए पतित नहीं चाहिए। पति वही होता है जो पत्नी को भोग से योग की तरफ ले जाए। योग से व्यक्ति का कल्याण होता है और भोग से विनाश होता है।

Monday, February 16, 2009

अच्छी माँ के दुष्ट सन्तान नहीं हो सकती।

दिति ने पैर पकड़ लिए तो )षि बोले कि तेरे बच्चे तो राक्षस होंगे पर पोते जो होंगे वो भक्त होंगे। इस शाप के परिणामस्वरूप जय और विजय दिति के गर्भ में सौ वर्षों तक रहे फिर हिरण्याक्ष व हिरण्यकश्यप के रूप में इनका जन्म हुआ। हिरण्यकश्यप का पुत्र हुआ प्रहृलाद जो भक्त शिरोमणि बना। अच्छी माँ के अच्छी सन्तान होती है, दुष्ट माँ के दुष्ट सन्तान होती है। अच्छी माँ के दुष्ट सन्तान नहीं हो सकती। सन्तान के स्वभाव से ही माँ के स्वभाव का ऑकलन करना चाहिए। खेती होती है तो भूमि के तरीके से ही होती है। जमीन के जैसे परमाणु होंगे वैसी ही फसल होती है। माँ देवी होगी तो देवता पैदा होंगे और यदि माँ भूतनी होगी तो भूत ही पैदा होंगे।

Saturday, February 14, 2009

जो स्त्री अपने पति का इस्तेमाल अपने मतलब के लिए करती है, उसके दुष्ट संतान पैदा होती है

जो पत्नी अपने पति के दुःख से दुःखी नहीं हो तो उसे देखने से भी पाप लगता है। वो पति जो पत्नी को दुःख दे और उसके दुःख से दुःखी न हो उसे भी देखने से पाप लगता है। पत्नी वो है जो अपने दुःख से नहीं पति के दुःख से दुःखी है, पति वो है जो अपने दुःख से नहीं पत्नी के दुःख से दुःखी है। बेटा वो है जो अपने नहीं वरन अपने माँ बाप के दुःख से दुःखी है. माँ बाप वो हैं जो अपने नहीं सन्तान के दुःख से दुःखी होते हैं। )षि कश्यप बोले, पत्नी वो है जो अपने नहीं पति के विषय में सोचती है। उसके भले के विषय में सोचती है। पर तूने ;दिति नेद्ध मित्र धर्म को, पति व्रत धर्म को कलंकित किया है। जा तुझे राक्षस संतान जुड़वाँ पैदा होंगी। जो स्त्री अपने पति का इस्तेमाल अपने मतलब के लिए करती है, उसके दुष्ट संतान पैदा होती हैऋ और जो स्त्री अपने पति को सुख देती है, उसके दुष्ट संतान पैदा हो ही नहीं सकती। आज कल हिन्दुस्तान में ५२ प्रतिशत जवान लोग तो हैं, पर इनमें से ९८ प्रतिशत शैतान ही निकलेंगे बाकी २ प्रतिशत ही देव निकलेंगे।

Wednesday, February 11, 2009

मित्र कितना ही गरीब क्यों न हो

जब जाऐं तो पानी-पानी हो जाए और जब आऐं तो रो-रो कर याद करे ऐसे मित्र के घर भूखा भी रह ले। ऐसा मित्र कितना ही गरीब क्यों न हो भाव का गरीब तो नहीं है। वहाँ जाना चाहिए। हम पर ऐसी भुखमरी नहीं है कि वहाँ जाए। भगवान कृष्ण ने दुर्योधन से यही कहा था कि दुर्योधन मैं तुम्हारा अन्न नहीं खाऊँगा। क्योंकि तुम्हारे अन्दर भाव नहीं है। अन्न सिर्फ दो परिस्थितियों में खाना चाहिए एक तो जब अन्न खाए बिना भूखा मर रहा हो कोई तो किसी का भी दया खा ले और दूसरा जब कि भोजन कराने वाले के मन में भाव हो। तो कृष्ण बोले मैं भूखा मर नहीं रहा और तुम्हारे मन में भाव का अभाव है। दूसरी तरफ विदुर जी पूरे भाव से श्र(ा की भावना से प्रेम पूर्वक प्रतिक्षा में थे, तो प्रभु श्रीकृष्णा दुर्योधन की मेवा को लात मार कर उनके यहाँ साग खाने भी पहुँच गए।

Monday, February 9, 2009

किसके यहाँ जाना चाहिए साधु को?


जो आगे भलाई करे और पीछे बुराई ऐसे के घर पाँव न धरे और जो जाते ही विरोध करे उसके यहाँ भी नहीं जाना चाहिए साधु को। तो फिर किसके यहाँ जाना चाहिए साधु को?

"आवत ही हरषे भला, जाते ही दइये रोय।

तुलसी, ऐसे मित्र घर, भूखो रहियो सोय।''

Saturday, February 7, 2009

साधु भूखा मान का, धन का भूखा नाय।


"साधु भूखा मान का, धन का भूखा नाय।

जो ध का भूखा फिरे, सो कोई साधु नाय॥

आवत ही हट से नहीं, नैनन नहीं सनेह।

तुलसी, वहाँ न जाइए, चाहे कंचन बरसे मेह॥

आवत ही हरसे भला, पीछे करे छबाऊ।

तुलसी ऐसे मित्र खल, भूल न धरियो पाव॥

Tuesday, February 3, 2009

साधु महात्मा को मान अपमान का विचार नहीं करना चाहिए।

शंकर जी ने कहा जहाँ पति का विरोध हो वहाँ जाना नहीं चाहिए। सती जी ने कहा तुम्हें जाना चाहिए। साधु महात्मा को मान अपमान का विचार नहीं करना चाहिए। शंकर जी ने कहा "मान अपमान को नहीं भावना तो देखते हैं। साधु महात्मा कोई पत्थर के नहीं हैं उनमें भी संवेदनाऐं होती हैं। मान अपमान को नहीं भाव को देखते हैं-