Monday, December 8, 2008

हमारे दिमाग में कोई क्लेष होता है, तो हम कलियुग में हैं


शौनक! परीक्षित ने जब सुना कि मेरे राज्य में कलियुग आ गया है तो उन्होंने उसका दमन और शमन करने के लिए चतुरंगिनी सेना तैयार की। उसे लेकर उन्होंने कुरु जांगल नामक प्रांत में जहां वह ठहरा था वहां प्रस्थान किया। कुरु जांगल- कुरु माने करना, जब हम कर्म करते हैं। और जांगल अर्थात अहंकार। हम कर्म करते हैं तो अहंकार को लेकर, मैं को लेकर या लक्ष्य को लेकर करते हैं। लेकिन जब कुछ भी दिमाग में नहीं रहता, बस शून्य होता है, उस समय जो क्रिया होती है तब क्लेष शांत होता है। तो रास्ते में उन्होंने देखा कि एक पैर वाला बैल रो रहा है और उसके पास में एक गाय भी रो रही है। उन्होंने बैल से पूछा कि भाई, तुम कौन हो? तो बैल बोला कि, 'मैं धर्म हूं और यह धरती है।'' परीक्षित बोले, 'तुम कैसे धर्म हो? मैंने तो सुना है कि धर्म के चार पांव होते हैं, पर तुम्हारा तो एक ही है।'' यह कहकर परीक्षित हंसने लगे। बैल बोला हां, 'सत्य बात है, पर कलियुग में तो मेरा बस यही एक पैर बचा है। बाकी तीन पांव, चरण तो खत्म हो गए हैं। माने पिचहत्तर प्रतिशत धर्म तो कलियुग में समाप्त हो गया। कलियुग का अर्थ ये मत समझना कि जो समय चल रहा है। कलियुग का अर्थ है कि जब हमारा दिमाग बेचैन होता है, जब हमारे दिमाग में कोई क्लेष होता है, तो हम कलियुग में हैं ओर हमारा दिमाग जब शांति में है तो हम सतयुग में हैं। देखना ये है कि हमारा मन, हमारा दिमाग किस युग में है। चौबीस घण्टे में चार युग बदल जाते हैं। दिन की बात करें तो इसके चार प्रहर चार युग हैं। भोर का, सुबह का समय सतयुग है, जब सब शान्त होता है। दोपहर त्रेता है, शाम को द्वापर और रात्रि में कलियुग। जब मन की मनमानी चलती हो, क्लेष हो.....................

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