Sunday, December 14, 2008

उस समय की बात है जब महाभारत का युद्ध चल रहा था

उस समय की बात है जब महाभारत का युद्ध चल रहा था. तथा आपने प्रतिज्ञा की थी कि मैं युद्ध में अस्त्र-शस्त्र धारण नहीं करुँगा। जिस दिन मुझे कौरव सेना का सेनापति बनाया जा रहा था उसी दिन मैंने प्रतिज्ञा की थी कि अगली सुबह होने वाले युद्ध में मैं यदि आपको अस्त्र-शस्त्र धारण न करवा दूँ तो शान्तनु तथा गंगा का पुत्र नहीं कहलाऊँगा। आज जो न हरि शस्त्र पहाऊँ। तो ला जूँ गंगा जननी को शान्तनु सुत न कहाऊँ॥

सूरदास जी ने बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। सवेरा हुआ युद्ध प्रारम्भ हुआ तो मैंने अपने सारथी को निर्देश दिया कि जहाँ कहीं भी कृष्ण हों वहीं रथ का संचालन कर ले चलो मुझे आप उन्हीं से युद्ध करना है। महाभयानक युद्ध हो रहा था, चारों ओर भेरियाँ बज रहीं थी, लाश पर लाश गिर रही थीं। वीभत्स! लेकिन मेरी आँखें तो उस महावीभत्स दृष्य के बीच आपको ढूढ़ रही थीं और आप जब मुझे दिखे तो मेरे तरकश से निकला एक-एक तीर धनुष की प्रत्यन्चा पर से होकर आपके कवच को लक्ष्य बनाकर उसे छिन्न-भिन्न करने लगे।

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