फिर तभी महात्मा अर्जुन भी भगवान श्री ड्डष्ण के धाम द्वारिका नगरी से लौट कर आए। युधिष्ठिर ने जब उन्हें देखा तो बोले, "अर्जुन, तुमने अवश्य कुछ पाप कर्म किया है। कुछ ऐसा किया है जो तुम्हें नहीं करना चाहिए था। कोई न कोई शास्त्र, लोक तथा समाज के विरुद्ध दुराचरण किया है। ऐसा तुम्हारा बुझा हुआ चेहरा बताता है। अर्जुन बोले, "नहीं भैया, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जैसा आप सोच रहे हैं, और न मैं कभी कर सकता हूं। हां, एक दुराचरण जो हमारे जीवन के भीतर कालिमा भरता है तथा भरने के बाद हमारे चेहरे में कालिमा पोत देता है वह एक ही है।
Thursday, December 4, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment