बहुत से साधु बढ़िया कपड़े नहीं पहनते कि कोई उनको साधु नहीं मानेगा। अरे खूब साफ सुथरे, बढ़िया पहनो। बस कोई स्वाद मत रखो। बढ़िया है तो ठीक है, घटिया है तो ठीक है। लेकिन ये क्या कि बढ़िया मिल रहा है, फिर भी नहीं पहन रहे कि दुनियाँ साधु नहीं कहेगी, भगत जी नहीं मानेगी, कहेगी भोगी है ये तो। तो डर के मारे बढ़िया कपड़े पहनना छोड़ दिया। स्वाद के मारे नहीं पहना। और दूसरा कोई पहन रहा है तो कुछ कहके मुँह बना रहा है तो काहे का भगत जी है? ये तो उसकी सुरुचि है।
Thursday, September 10, 2009
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