Tuesday, December 23, 2008

भागवत कहती है, "पहले अनुशासन सीखो।''

फिर अदृष्ट परमात्मा ने, उसके तीन भाग किए अधिदैव ;आधारद्ध, अध्यात्म ;शूक्ष्म और अधिभूत ;स्थूलद्ध। फिर भी सृष्टि नहीं हुई। तदुपरांत उनकी नाभि से कमल पर ब्रह्मा उत्पन्न हुए। ब्रह्मा सैकड़ों दिव्य तक, कमल की कर्णिका को पकड़े, नाल को पकड़े भटकता रहा, पर जान नहीं पाया कि "मैं कौन हूँ?''

देखो, वेदान्ती कहते हैं कि पहले ये जानो कि "मैं कौन हूँ''? भागवत्‌ कहती है, कि "तुम ये जान ही नहीं सकते कि तुम कौन हो''। जब जान ही नहीं सकते "मैं'' को तो क्या करोगे? बस चुप बैठ जाओ। योग कहता है ÷÷अथ योगानुशासनम्‌'' अनुशासन सीखो। वेदान्ती यदि अनुशासन करता नहीं, जीवन में संयम-नियम है नहीं, इन्द्रियाँ कहीं हैं, मन कहीं और मस्तिष्क कहीं और, तो ब्रह्मज्ञानी कहाँ से हो गया? अनुभव कहाँ से हो गया? कहाँ से ज्ञान होगा? इसलिए भागवत कहती है, "पहले अनुशासन सीखो।''

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