हमारे यहाँ कालिदास जी ने कहा है अभिज्ञान शाकुन्तलम् में ÷सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' सत्य क्या है? जो सबको अच्छा लगे जो सर्वहितकारी हो। इसमें तुम्हारे मन की नहीं चलेगी क्योंकि ज+रुरी नहीं है जो तुम्हारे मन को अच्छा लगे वही तुम्हारे लिए अच्छा हो। अच्छा क्या है? जिसमें तुम्हारा हित हो। जो इस भगवान की कथा को सुन्दर मानता है वही मन सुन्दर है पर जो इसे सुन्दर नहीं मानता, जो इधर उधर की मन मानी चीजों वह तो खुद ही बेकार गन्दा है क्योंकि गटर के पानी में खुशबू कैसे आ सकती है? तो उसके लिए कोई सुन्दर कैसे हो सकता है। संसार की चीजों को चाहने वाले मन के लिए तो कुछ सुन्दर हो ही नहीं सकता। . . . . . . इसीलिए तो मैं ये सत्संग तुम्हें सुना रहा हूँ, यह बहुत सुन्दर है हर किसी को इसे पढ़ना चाहिए था तथा पढ़ने के साथ-साथ इस पर विचार करके हृदयंगम करना चाहिए था। महाभारत के यु( के बाद में जब अश्वथामा के ब्रह्मस्त्र से उत्तरा का गर्भ क्षीण हो रहा था तब वह व्याकुल होकर रोती बिलखती भगवान श्री कृष्ण के चरणों में आई और कहने लगी ''भगवान् चाहे मेरी मृत्यु हो जाए पर मेरे गर्भ में पल रहा इस वंश का अन्तिम चिराग रौशन रहे।''
Friday, December 12, 2008
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