Saturday, December 6, 2008

जब मन को कुछ नहीं चाहिए तो क्लेष मरता है।

ये जो बेचैनी है, सभी को परेशान करती है। चाहे सम्राट हो या गरीब हो। इस बेचैनी को कैसे मारा जाए, इसकी कथा है। इस बेचैनी को दूर करना हर कोई नहीं चाहता है। तुम सोच रहे होगे कि हम चाहते हैं, कि हमारी बेचैनी दूर हो जाए। नहीं चाहते। तुम चाहते हो कि हमारा नाम हो और हमारे पास दाम हो, बस। शान्ति से रहना नहीं चाहता कोई। मन माने रहना चाहते हैं। अगर शान्ति से रहना चाहे कोई तो मन को मार करके रहेगा। मन की मान करके नहीं चलेगा। तुम मन की ही मानते हो और मन को ही तानते हो। और जो क्लेष को चाहेगा वह मन की मान कर रहेगा। मन को मारेगा नहीं, उसको बढ़ावा देगा। राजा होकर क्लेष को मारने चलो।

राजा माने मन जब पूरा हो जाए। अब मन पूरा हो गया। अब मन में इच्छा नहीं रही। अब तक तो मन गुलाम था, नौकर था, भटकता था। अब मन राजा हो गया। अब कुछ भी ऐसा नहीं रहा जो उसके पास नहीं। अब उसके पास सबकुछ है। मन में जब कोई इच्छा नहीं रह जाती तब क्लेष मरता है।... और जब तक मन में कोई इच्छा है तब तक शान्ति की बात करना बेमानी बात है। सुन्दर प्रसंग है। जब मन को कुछ नहीं चाहिए तो क्लेष मरता है।

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