जहाँ बिना धन्धे की निःशुल्क ज्ञान की धारा चलती हो, मैं वहाँ जरूर आऊँगा। इसलिये कथा वही है जिसमें धन्धे का मतलब नहीं हो। इस कथा को नियमपूर्वक सुनना चाहिए। नियमों के बारे में कहा गया है कि जो इस कथा को सुने तो ब्रह्म मुहूर्त में जागे, नहाये, धोये, स्नान करे, माता-पिता, गुरू, सन्त, ब्राह्मण, गऊ की सेवा करे। दान करे, व्यास गद्दी की परिक्रमा करे। कथा स्थल पर होने वाले दैनिक हवन में आये और आहुति दे। जो आचार्य हवन कराते हैं, उनको नित्य दक्षिणा जरूर दे। बिना दक्षिणा दिये हवन का फल नहीं बनता। कथा प्रारम्भ होने से पहले आये और कथा में से पीछे जाये। कथा में खाली हाथ नहीं जाये, दान पुण्य अवश्य करना चाहिये। खाली हाथ न आये और न खाली हाथ जाये। प्रसाद लेकर के जाना चाहिये। पहले आये और पीछे जाये। पवित्र रहे, फालतू डोलना, फालतू बोलना, फालतू खान-पान इनको छोड़ दे। जिन वस्तुओं से बदबू आती है, उन चीजों को नहीं खाये जैसे- प्याज है, लहसुन है। जिनसे वासना भड़कती है, सैक्सुअल्टी बढ़ती है, उन वस्तुओं को कथा श्रवण के दौरान ग्रहण न करे। प्याज है, लहसुन है, बैंगन है, गुड़ है, तेल है, खटाई है, चिकना है, चुपड़ा है इसको छोड़ दे। नियम से कथा सुने। गुरू मन्त्र का जाप करता हुआ ब्रह्मचर्य से रहे, संयम से रहे तो निश्चित ही उसको कथा के फल की प्राप्ति होती है। यह नारद जी को उन्होंने सप्ताह श्रवण की विधि और महात्म्य कहा। फिर नारद जी ने उनको विदाई दी ।
Monday, November 24, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
आपका आभार इन सदविचारों के लिए.
Post a Comment