Tuesday, November 11, 2008

इंसान वह जो अपने बजाय दूसरे के दुःख से दुखी हो.

जो पत्नी अपने पति के दुःख से दुःखी नहीं हो तो उसे देखने से भी पाप लगता है। वो पति जो पत्नी को दुःख दे और उसके दुःख से दुःखी न हो उसे भी देखने से पाप लगता है। पत्नी वो है जो अपने दुःख से नहीं पति के दुःख से दुःखी है, पति वो है जो अपने दुःख से नहीं पत्नी के दुःख से दुःखी है। बेटा वो है जो अपने नहीं वरन अपने माँ बाप के दुःख से दुःखी है। माँ बाप वो हैं जो अपने नहीं सन्तान के दुःख से दुःखी होते हैं। दिव्या रुद्र कहते हैं की मनुष्य को अपने दुःख से कभी भी दुखी नहीं होना चाहिए।

2 comments:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

अपने दुख से जो दुखी,मनुल वो पशु समान.
औरों का दुख झेलता, उसे देवता मान.
उसे देवता मान, जो धरती स्वर्ग बनाये.
तप और परहित के बल महामानव बन जाये.
कह साधक कवि,कभी न डरना अपने दुख से.
जग के दुख को बङा मान ले अपने दुख से.

Dr. Sanjay Kumar said...

dhanyabaad ummedji aapke comment ko link ke sath post kar diya hai. asha hai ap naraj na honge.