"इस तन को सजाने में जीवन को बिगाड़ लिया''-२
तेरी मांग रहे सूनी,ऐसा श्रृंगार किया-२
इस तन को सजाने में..................................।
सावन में पपीहे ने क्या राग सुनाए हैं-२
आंधी तूफां आए बादल भी छाए हैं
एक बूंद भी पी न सका, ये क्यूँ न विचार किया।
तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया
इस तन को सजाने में................................।
इस धूल के कण-मन को, कीचड़ क्यों बनाते हो?
लहराते चमन दिल को, बीहड़ क्यों बनाते हो?
क्यों ओस में रंग भर कर तस्वीर को फाड़ दिया?
तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया
इस तन को सजाने में..............................।
रंग ढंग सब बिगड़ गया, सतसंग से बिछड़ गया।-२
नर होकर नरक गया, खुद से ही झगड़ गया।
बुद्धि दी ईश्वर ने, फिर भी ना सुधार किया।
तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार
इस तन को सजाने में.....................।
ग्रन्थों को पढ़कर भी अभिमान में डूबा है-२
अपने ही पुजापे में पूजा को भूला है।
रुद्र, अंधेरों में क्यूँ नहीं उजियार किया?
तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया।
इन तन को सजाने में....................।
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