Saturday, November 22, 2008

जहाँ धन्धा होगा, वहाँ मैं नहीं आऊँगा।

.............. सुखदेव भी पधारे। भगवान, प्रहलाद, उद्धव, अर्जुन आदि को लेकर पधारे और कहा कि जहाँ कहीं भी पवित्र कथा होगी, वहाँ मैं आऊँगा। जहाँ धन्धे की कथा होगी, वहाँ तो धन्धा ही आयेगा, धन्धे खोर ही आयेंगे, मैं नहीं आऊँगा। जैसे कुछ लोग कथा करते हैं, सत्संग करते हैं और चूरन बेचते हैं, चटनी बेचते हैं। कहते हैं कि हमारा च्यवनप्राश खाओ, हमारी चटनी खाओ, हमारी माचिस लो, हमारी बीड़ी पीओ। बीड़ी भी बनाते हैं। हमारा पैन लो, हमारी स्लेट लो, हमारी घड़ी ले लो, हमारी ये दवाई ले लो- हमारी ये दवाई ले लो।

जहाँ धन्धे का मतलब होता है, वो कथा नहीं, वो मजमा होता है। एक व्यथा होती है। वो धर्मात्मा है ही नहीं। वो तो धनमात्मा हैं। .... तो जहाँ धन्धा होगा, वहाँ मैं नहीं आऊँगा।

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