महर्षि कर्दम पर्वत के ऊपर तपश्चर्या करते थे। भगवान के आदेश पर उन्होंने मनु की पुत्री देवहूति से विवाह किया। लेकिन उन्होंने मनु के सामने एक शर्त रखी, कि मनुष्य का जन्म मुक्ति के लिए मिला है। गृहस्थ होता है केवल वंश चलाने के लिए और वंश चलता है एक संतान से। तो जब भी एक पुत्र हो जाएगा मैं सन्यास ले लूँगा। यदि तुम्हारी पुत्री को यह मंजूर है तो मैं उससे विवाह करने को तैयार हूँ। देवहूति ने कहा मुझे भी पति चाहिए पतित नहीं चाहिए। पति वही होता है जो पत्नी को भोग से योग की तरफ ले जाए। योग से व्यक्ति का कल्याण होता है और भोग से विनाश होता है।
Sunday, November 16, 2008
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