Saturday, January 24, 2009

नन्दी महात्मा से ये चापलूसी बर्दाश्त नहीं हुई।

तो भक्त से - नन्दी महात्मा से ये चापलूसी बर्दाश्त नहीं हुई। द्विज कुल को उन्होंने श्राप दे दिया कि ये सब सर्वभक्षी होंगे, तो ब्राह्मण जो भी च+ीज स्वाद की होगी उसे ये नहीं देखेंगे कि इसे खाना उचित है अथवा अनुचित सब का भक्षण करेंगे। और धन के या इन्द्रियों के गुलाम होकर घर-घर भीख माँगते भटकते फिरेंगे। श्रीमद्भागवत्‌ में द्विज कुल को नन्दी ने इतना भयंकर श्राप दे दिया। ये मृगु से बर्दाश्त नहीं हुआ उन्होंने भी श्राप दे दिया कि जितने भी शंकर के मानने वाले शरीर होंगे वे सब अमंगल वेश धारण करने वाले होंगे। एक तरफ से श्राप दूसरी तरफ से भी श्राप। शंकर जी दुःखी हुए वहाँ से चले गए। ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति का और च्तवउेजपवद कर दिया और भी अहंकार हो गया, अति पति बना दिया प्रजापति की जगह। जब नेता जी की कुर्सी बढ़ गई तो अहंकार भी बढ़ गया। नेताओं में नहीं कुर्सी में अहंकार होता है कुर्सी में मद होता है।

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