Tuesday, January 20, 2009

ज्ञानी के भक्त होते हैं नेताओं के पास चापलूस होते हैं।

तो दक्ष प्रजापति के चापलूस राजा लोग भी शंकर भगवान का अपमान करने लगे कुछ ऐसा वैसा कहने लगे, तान फाड़ने लगे। तो शंकर जी के वाहन नन्दी जी से ये बर्दाश्त नहीं हुआ। तो शंकर कहते हैं ज्ञानी को और नन्दी कहते हैं भक्त को। तो ऐसे चापलूसों की हरकतों को भक्तगण कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।

ज्ञानी के भक्त होते हैं नेताओं के पास चापलूस होते हैं। नेताओं की नेतागीरी सलामत है, तो चापलूसों की चापलूसी सलामत है परन्तु जहाँ नेताओं की कुर्सी ज+रा खिसकी तो चापलूस दुम दबाकर के खिसके। "चापलूस भाई किसके दुम दबाकर खिसके ये न उसके, न इसके।''

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