Thursday, January 8, 2009

धीरे-धीरे अभ्यास करने से चित्त के सारे के सारे आवरण हट जाते हैं


इस तरह धीरे-धीरे अभ्यास करने से चित्त के सारे के सारे आवरण हट जाते हैं, मल विक्षेप नष्ट हो जाते हैं। ज्योतिष्मात्री और श्लोक रहित बुद्धि की प्राप्ति होती है, विवेक प्राप्त होता है। तब तो आत्मा से मुक्त होकर आत्मा में स्थित होता है। अनात्मा का आवरण के हटने पर आत्मा से ज्योति से प्रदीप्त होता है। हे माँ! जो ऐसा नहीं करता है वह पुनः-पुनः जन्म मृत्यु को प्राप्त होता है और नाना योनियों में भटकता है, नरकों में जाता है।

"पुनरपि जन्मम्‌ पुनरपि मरणम्‌।''

ये उपदेश दिया। माँ ने अपने पुत्र के चरण वन्दन किए। कपिल मुनि ने माँ से विदाई ली समुद्र पर आए, चरण पखारे समुद्र ने वहीं गंगासागर पर भगवान रहने लगे। माँ ने अपने शरीर को धर्मपूर्वक पूर्ण करके मुक्ति प्राप्ति की। पुरुष और प्रकृति के विवेक से योग और भक्ति पूर्वक मुक्ति के उदाहरण को आपने सुना।

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