विदुर जी घर पर नहीं थे। उनकी पत्नी सुलभा थीं। उन्होंने सुना कि भगवान श्री कृष्ण आज दुर्योधन को समझाने धृतराष्ट के पास आ रहे हैं। इसी रास्ते से लौटेंगे। तो सोच रही थीं कि जब भगवान इधर से गुजरेंगे तो अपनी झोंपड़ी से ही उनके दर्शन कर लूंगी। सुलभा सोच रही थी कि अब कृष्ण बैठे होंगे, दुर्योधन व धृतराष्ट के पास। साथ में कर्ण होगा, शकुनि भी होगा। चित्र बन रहे थे कल्पना में। उनकी काली काली घुंघराली लटें, उनके चौड़े मस्तक पर बिखरे हुए उनके बाल, सुन्दर बड़ी बड़++ी आंखें, सुभग नासिका, ये सब, उनका चेहरा याद आ रहा था। सोचा कि कहीं जल्दी में निकल न जाएं। तो जल्दी से स्नान कर लूं। फिर खयाल आया कि अगर वो इधर आ गए, तो उन्हें खिलाने को क्या है। देखा, घर में केले रखे थे। सोचा, चलो कन्हैंया आएंगे तो उन्हें केले दे दूंगी। फिर किबाड़ बन्द कर जल्दी जल्दी स्नान करने चली गईं। सोचा घर आए कन्हैंया, तो खाने का इन्तजाम तो है, पर दर्शन करने के लिए स्नान जरूरी है। पवित्र होना जरूरी है। तो वस्त्र उतार कर घर के भीतर स्नान करने लगीं।
Saturday, March 28, 2009
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