Friday, March 6, 2009

बुद्धि दी ईश्वर ने, फिर भी ना सुधार किया।


इस धूल के कण-मन को, कीचड़ क्यों बनाते हो?

लहराते चमन दिल को, बीहड़ क्यों बनाते हो?

क्यों ओस में रंग भर कर तस्वीर को फाड़ दिया?

तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया

इस तन को सजाने में..............................।

रंग ढंग सब बिगड़ गया, सतसंग से बिछड़ गया।-२

नर होकर नरक गया, खुद से ही झगड़ गया।

बुद्धि दी ईश्वर ने, फिर भी ना सुधार किया।

तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया।

इस तन को सजाने में.....................।

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