सात्त्विक पुरुष' को प्रिय लगने वाले भोजन में उन सभी भोज्य पदार्थों की गणना की गयी है जो मनुष्य को दीर्घायु, बुद्धि, आरोग्य व उत्साह प्रदान करते हैं। जिन्हें रसयुक्त, चिकने (दुग्ध-घृतादि)भोजन की संज्ञा से अभिहित किया गया है। यहां इसका भी स्पष्ट उल्लेख है कि राजसी आहार में कड़वे, तीखे, चटपटे, भोज्य-पदार्थ आते हैं जो नाना प्रकार के रोगों, दुखों व भय को आंत्रण देने वाले हैं। 'तामसिक आहार' के अंतर्गत उन सभी त्याज्य भोज्य पदार्थ का वर्णन है जो निश्चित रूप से शरीर-हानि करने वाले हैं। सड़ा-गला, बासी, दुर्गधयुक्त, अपवित्र (संदूषित)भोजन कदापि ग्रहण करने योग्य नहीं है।
Wednesday, March 18, 2009
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1 comment:
दूषित भोजन स्वास्थ के लिए सभी हानिकारक होता है।तो फिर वो भिखारी ही क्यूँ न हो।शरीर एक मंदीर है।तन शुद्ध तो मन भी शुद्ध हो जाता है।शरीर रूपी इस मंदीर मे आत्मा रूपी भगवान विराजमान है।तो अपना कर्तव्य है कि इस शरीर रूपी इस मंदीर को दूषित न करे।हरि ओउम्।
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