परीक्षित! यहाँ सतीजी का शरीर भस्म हो गया। रुद्रगणों ने जब यज्ञ में गड़बड़ी की तो भृगु ने उनको वहाँ से खदेड़ दिया। चार माह बाद नारद जी के द्वारा शिवजी को यह सब पता चला। अपनी पत्नी सती के भस्म हो जाने की खबर पर उनको बहुत बुरा लगा। उन्होंने अपनी जटा के एक बाल को जमीन पर पटक कर वीरभद्र को उत्पन्न किया। त्रिनेत्र धारी उस वीर के हजारों भुजाएं थीं, जो हजारों अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित थीं। शंकरजी की परिकृमा कर उसने झुककर शिव को नमन किया और आज्ञा माँगी। शंकर जी ने उसका नाम वीरों में श्रेष्ठ वीरभद्र रखा और कहा कि, "देखो हमारी प्रिया सती, दक्ष प्रजापति के द्वारा हमारे अपमान के कारण यज्ञ में ही भस्म हो गईं हैं। इसलिए इस दुष्ट यज्ञ करने वाले दक्ष प्रजापति के सिर को कलम कर दो, जो कोई भी उसका पक्ष ले उसका भी रक्तपात करदो।''
Tuesday, April 14, 2009
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1 comment:
adbhoot jankari..
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