Monday, April 6, 2009

इज्जत चाहिए तो अपने घर और घरवाले का कहीं अपमान नहीं करना चाहिए

यहाँ पर आईं तो उनको कोई सम्मान नहीं मिला। अपने पति का सम्मान न करके, घर का सम्मान न करे, ऐसी स्त्री को कहीं सम्मान नहीं मिलता। इसलिए, अगर इज्जत चाहिए तो अपने घर और घरवाले का कहीं अपमान नहीं करना चाहिए। यज्ञ स्थल पर भी सती जी को कोई सम्मान नहीं मिला। वहां साधु सन्यासियों के लिए कोई स्थान था ही नहीं। नेताजी के यहां तो बस नोट वाले और वोट वाले को ही सम्मान मिलता है। सतीजी को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। अपने पिता और यज्ञ करने वालों को बुरा भला कहकर उसी यज्ञ कुण्ड में बैठकर योगाभ्यास के द्वारा शिवचिन्तन करते हुए अपने शरीर को भस्म कर दिया। शंकर का ध्यान करने से अगले जन्म में हिमालय की पुत्री पार्वती बनीं। पाँच वर्ष की अवस्था में नारदजी से ज्ञान लेकर, तप करके शिव प्रिया बनीं। पार्वती कहते हैं, स्थिर बुद्धि पवित्र बुद्धि भरोसे की बुद्धि सती की बुद्धि चंचल थी। पार्वती कहते हैं टिकाऊ बुद्धि को। जो आदमी अलग अलग काम करते हैं, जगह जगह दाव लगाते हैं, वे सुखी नहीं रह पाते। कुछ लोग होते हैं जो यहां बैठे, वहाँ बैठे। इधर की उधर कही और उधर की इधर। वो चुगलखोर होते हैं। ये कहीं न सुख पाते हैं, न सम्मान पाते हैं। सबकी निन्दा जो कोइ करहि....

No comments: