Sunday, April 12, 2009

सड़ा-गला, बासी, दुर्गधयुक्त, अपवित्र (संदूषित)भोजन कदापि ग्रहण करने योग्य नहीं है।

आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख, प्रीति बढ़ाने वाले, रसयुक्त, चिकने, स्थिर रहने वाले, मन को प्रिय लगने वाले भोज्य पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं। कड़वे, खट्टे, लवण युक्त, अति गर्म, तीक्ष्ण रूखे, दाहकारक, भोज्य पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं, जो दु:ख चिंता और रोगों को उत्पन्न करने वाले हैं। अधपका, रसरहित, दुर्गन्धयुक्त बासी, उच्छिष्ट, अपवित्र, भोजन तामस पुरुष को प्रिय होते हैं।)स्पष्टत: 'सात्त्विक पुरुष' को प्रिय लगने वाले भोजन में उन सभी भोज्य पदार्थों की गणना की गयी है जो मनुष्य को दीर्घायु, बुद्धि, आरोग्य व उत्साह प्रदान करते हैं। जिन्हें रसयुक्त, चिकने (दुग्ध-घृतादि)भोजन की संज्ञा से अभिहित किया गया है। यहां इसका भी स्पष्ट उल्लेख है कि राजसी आहार में कड़वे, तीखे, चटपटे, भोज्य-पदार्थ आते हैं जो नाना प्रकार के रोगों, दुखों व भय को आंत्रण देने वाले हैं। 'तामसिक आहार' के अंतर्गत उन सभी त्याज्य भोज्य पदार्थ का वर्णन है जो निश्चित रूप से शरीर-हानि करने वाले हैं। सड़ा-गला, बासी, दुर्गधयुक्त, अपवित्र (संदूषित)भोजन कदापि ग्रहण करने योग्य नहीं है।

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