Sunday, July 26, 2009

मन के पीछे हम अनीति को पकड़ लेते हैं।

जो मन के अधीन होते हैं, वे धर्म को और नीति को त्याग देते हैं, तो मन के पीछे हम अनीति को पकड़ लेते हैं। मात्र राजा और रानी की ही नहीं वरन यह धर्म की कथा है। भागवत, सुन्दर नीति की कथा, व्यास जी की पवित्र कथा, शुकदेवजी जैसे पवित्र मुनि की कही कथा जिसे परीक्षित जैसे जिज्ञासु ने सुना- साधारण नहीं है ये। बहुत समझने की कथा है। मन के अधीन होने की स्थिति बहुत खतरनाक होती है। तुम सोचते हो मैं ये कर रहा हूँ, पर नहीं, तुम कुछ और ही सोच रहे होते हो। तुम सोचते हो कि मैं खाना खा रहा हूँ, पर ये मन तो कुछ और ही चिंता में लगा हुआ है। तुम सोचते हो कि तुम दुनियाँ को छोड़ आए, नहीं छोड़ आए, दुनियाँ को ऊपर से छोड़ा पर दुनियाँ की चाहत तो तुम्हारे साथ है। स्त्री, पुत्र, घर-बार सब छोड़ दिया पर यहाँ पर भी स्वाद पीछा नहीं छोड़ता। स्वाद- सुरुचि और उत्तम- बढ़िया।

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