Wednesday, July 8, 2009

यहाँ क्या करना है ये ध्यान है तुम्हें?

एक महात्मा मेरे साथ पिछले २०-२५ सालों से रह रहे हैं और जब भी बात करते हैं तो अपनी बात। अब कह रहे हैं कि अरे हमें तो किराया ही नहीं दे गए। बहुत चुप रह रहे हैं। कह रहे हैं कि मैं बहुत सुधर गया हूँ। पर बात करने आए तो किराए की। तुम्हें यहाँ क्या करना है ये ध्यान है तुम्हें? या किराया का ही ध्यान है ये बताओ? अब तुम्हें क्या बात करनी है ये तुम्हें पता है? अरे साहब हमें रोटी घर की नहीं मिली। रोटी तो मिली? पेट तो भरा? "रोटी तो मिली, लेकिन...........'' ये लेकिन- लेकिन क्या है? यही सुरुचि है। गुरु बात करेंगे सुरुचि को लेकर। गुरु भी चेले को धर्म की बात नहीं बताऐंगे, मन की बात करेंगे। सुनीति की बात नहीं बताऐंगे मन की बात करेंगे। सुरुचि की बात करेंगे। अपनी-अपनी दुकान लेकर के बैठे हैं। खाली हाथ हैं और खाली जेब है और झोली बहुत लम्बी है।

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