Wednesday, February 11, 2009

मित्र कितना ही गरीब क्यों न हो

जब जाऐं तो पानी-पानी हो जाए और जब आऐं तो रो-रो कर याद करे ऐसे मित्र के घर भूखा भी रह ले। ऐसा मित्र कितना ही गरीब क्यों न हो भाव का गरीब तो नहीं है। वहाँ जाना चाहिए। हम पर ऐसी भुखमरी नहीं है कि वहाँ जाए। भगवान कृष्ण ने दुर्योधन से यही कहा था कि दुर्योधन मैं तुम्हारा अन्न नहीं खाऊँगा। क्योंकि तुम्हारे अन्दर भाव नहीं है। अन्न सिर्फ दो परिस्थितियों में खाना चाहिए एक तो जब अन्न खाए बिना भूखा मर रहा हो कोई तो किसी का भी दया खा ले और दूसरा जब कि भोजन कराने वाले के मन में भाव हो। तो कृष्ण बोले मैं भूखा मर नहीं रहा और तुम्हारे मन में भाव का अभाव है। दूसरी तरफ विदुर जी पूरे भाव से श्र(ा की भावना से प्रेम पूर्वक प्रतिक्षा में थे, तो प्रभु श्रीकृष्णा दुर्योधन की मेवा को लात मार कर उनके यहाँ साग खाने भी पहुँच गए।

2 comments:

pawan said...

bahut hi badiya. apka
pawan dixit

pawan said...

apka likhane ka jabab nahi atama

santusht ho gayi

pawan dixit