इसलिए देवता शंकर जी की शरण में गए और हाथ जोड़कर वन्दन कर, निवेदन किया। शंकर जी बोले, "देखो, भगवान की माया से मोहित होकर दक्ष जैसे नासमझों के पापकर्मों का ना मैं चिन्तन करता हूं, ना चर्चा करता हूँ। हाँ, सावधान करने के लिए मैंने इस थोड़े से दण्ड का प्रावधान किया है। कोई बदला नहीं लिया, वैर या द्वेष नहीं किया। जैसे माता-पिता बच्चे को मारते नहीं हैं, समझाने के लिए डाँट देते हैं, ऐसे ही साधु-महात्मा भी किसी को डाँट रहे हों, चाहे पीट रहे हों, उनके पाँव पड़े। माँ अगर झगड़ रही हो तो भी पांव पकड़े, बराबरी ना करें, जबान ना पकड़े।
Friday, May 15, 2009
Wednesday, May 6, 2009
अहंकार और घमण्ड से कुछ नहीं मिलता।
दक्ष प्रजापति आया, अहंकार आया तो गड़बड़ी होगी। इसलिए इस अंहकार को मारना सीख लो। बहुत गहरी कथा है। हम अंहकार को राजा बना लेते हैं और जैसा अहंकार कहता है वैसा आचरण करने लगते हैं। अरे ऐसा नहीं करेंगे तो हमें कौन पूछेगा, ऐसा करेंगे तो गाँव में कैसे रहेंगे, बच्चे कैसे पलेंगे, कैसे बढेंगे, कैसे पढेंगे। ये उल्टी-सीधी बातें आती हैं अहंकार में। अरे, समझदारी अलग च+ीज होती है। इसलिए देवता वो जो समझदारी से चले। भैया, अहंकार और घमण्ड से कुछ नहीं मिलता। जहां कहीं भी झगड़ा है वहां अहंकार है, समझदारी नहीं। समझदारी की बात होगी, झगड़ा होगा ही नहीं।
Friday, May 1, 2009
शिव कहते हैं ज्ञान को।
पवित्र लोग ही चाहते हैं कि कथा हो, सत्संग हो, हवन हो, दान-पुण्य हो, कीर्तन हो। इन कार्यों को करवाने की जो कहे, वह देवता है। गन्दे-गन्दे काम करने को जो कहे, वही असुर है। पर पवित्र काम शिव के बिना नहीं होगा। शिव कहते हैं ज्ञान को। बिना ज्ञान व समझ के पवित्र काम नहीं होगा। देवता अगर ज्ञान में चलते हैं तो मनोरथ सुफल होते हैं और अहंकार में चलते हैं तो सब गड़बड़ी होती है। इसलिए कभी अकड़ में काम नहीं करना चाहिए। हमेशा समझदारी से काम करें।