इसलिए देवता शंकर जी की शरण में गए और हाथ जोड़कर वन्दन कर, निवेदन किया। शंकर जी बोले, "देखो, भगवान की माया से मोहित होकर दक्ष जैसे नासमझों के पापकर्मों का ना मैं चिन्तन करता हूं, ना चर्चा करता हूँ। हाँ, सावधान करने के लिए मैंने इस थोड़े से दण्ड का प्रावधान किया है। कोई बदला नहीं लिया, वैर या द्वेष नहीं किया। जैसे माता-पिता बच्चे को मारते नहीं हैं, समझाने के लिए डाँट देते हैं, ऐसे ही साधु-महात्मा भी किसी को डाँट रहे हों, चाहे पीट रहे हों, उनके पाँव पड़े। माँ अगर झगड़ रही हो तो भी पांव पकड़े, बराबरी ना करें, जबान ना पकड़े।
Friday, May 15, 2009
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