Monday, June 22, 2009

मन से असंग होने का नाम है भजन

उत्तम की माँ है सुरुचि। उत्तम माने बढिया और सुरुचि माने मनमानी। हर आदमी मनमानी को लेकर के बैठा है। बड़े-बडे+ मण्डलेश्वर और महामण्डलेश्वर भी मन के स्वाद को लेकर बैठे रहते हैं। नीति और धर्म पर चलने वाला तो करोड़ों में कोई एक-आध होता है। समझते ही नहीं हैं लोग। अपने से फुर्सत ही नहीं है। मन का जो स्वाद है उसी में ही लगे रहते हैं, जबकि मन से असंग होने का, मन का भर्जन होने का नाम ही भजन है।

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