Sunday, July 26, 2009

मन के पीछे हम अनीति को पकड़ लेते हैं।

जो मन के अधीन होते हैं, वे धर्म को और नीति को त्याग देते हैं, तो मन के पीछे हम अनीति को पकड़ लेते हैं। मात्र राजा और रानी की ही नहीं वरन यह धर्म की कथा है। भागवत, सुन्दर नीति की कथा, व्यास जी की पवित्र कथा, शुकदेवजी जैसे पवित्र मुनि की कही कथा जिसे परीक्षित जैसे जिज्ञासु ने सुना- साधारण नहीं है ये। बहुत समझने की कथा है। मन के अधीन होने की स्थिति बहुत खतरनाक होती है। तुम सोचते हो मैं ये कर रहा हूँ, पर नहीं, तुम कुछ और ही सोच रहे होते हो। तुम सोचते हो कि मैं खाना खा रहा हूँ, पर ये मन तो कुछ और ही चिंता में लगा हुआ है। तुम सोचते हो कि तुम दुनियाँ को छोड़ आए, नहीं छोड़ आए, दुनियाँ को ऊपर से छोड़ा पर दुनियाँ की चाहत तो तुम्हारे साथ है। स्त्री, पुत्र, घर-बार सब छोड़ दिया पर यहाँ पर भी स्वाद पीछा नहीं छोड़ता। स्वाद- सुरुचि और उत्तम- बढ़िया।

Wednesday, July 22, 2009

सब मन की कर रहे हैं

तुम दुनियाँ भर के कष्ट झेलकर पैसा कमा कर लाते हो। दुनियाँ भर की आफत उठाकर के आते हो कहीं जेब कट गई, कहीं पुलिस ने परेशान किया। तुमने सोचा कि घर जाऐंगे तो घरवाली के पास बैठेंगे, थोड़ी शान्ति आएगी और घरवाली तो मुँह फुला करके बैठी है। इन्स्पक्ैटर और अफसर को तो पैसे देकर के छूट आए, इस घरवाली से कैसे छूटोगे बेटा। बीबी को कैसे भी मना लिया अब मम्मी मुँह फुलाकर बैठी, बेटा-बेटी सब अपने मन की पूरी कराने को बैठे हैं।

Sunday, July 12, 2009

बस धर्म की नीति पर चलो

तो सुनीति ने समझाया ध्रुव को, कि बेटा तुम्हें इस संसार में ही रहना है, तो तुम्हें सुन्दर नीति की सुनीति की जरूरत है। नीति की तो जरूरत है पर कठोर नीति नहीं कि कोई तुम्हारे काम में ही गड़बड़ी फैला जाए। दुनियाँ तुम्हें ठग रही है, लूट रही है तो तुम दुनियाँ से अपनी बात को छुपा करके बस धर्म की नीति पर चलो। अगर भगत जी बने तो एक मिनट नहीं चलेगी। आज लोगों ने धर्म को छोड़ दिया, नीति को छोड़ दिया, सुनीति को छोड़ दिया है, अपने मन को सुरुचि के साथ बेठी है दुनियाँ।

Wednesday, July 8, 2009

यहाँ क्या करना है ये ध्यान है तुम्हें?

एक महात्मा मेरे साथ पिछले २०-२५ सालों से रह रहे हैं और जब भी बात करते हैं तो अपनी बात। अब कह रहे हैं कि अरे हमें तो किराया ही नहीं दे गए। बहुत चुप रह रहे हैं। कह रहे हैं कि मैं बहुत सुधर गया हूँ। पर बात करने आए तो किराए की। तुम्हें यहाँ क्या करना है ये ध्यान है तुम्हें? या किराया का ही ध्यान है ये बताओ? अब तुम्हें क्या बात करनी है ये तुम्हें पता है? अरे साहब हमें रोटी घर की नहीं मिली। रोटी तो मिली? पेट तो भरा? "रोटी तो मिली, लेकिन...........'' ये लेकिन- लेकिन क्या है? यही सुरुचि है। गुरु बात करेंगे सुरुचि को लेकर। गुरु भी चेले को धर्म की बात नहीं बताऐंगे, मन की बात करेंगे। सुनीति की बात नहीं बताऐंगे मन की बात करेंगे। सुरुचि की बात करेंगे। अपनी-अपनी दुकान लेकर के बैठे हैं। खाली हाथ हैं और खाली जेब है और झोली बहुत लम्बी है।