Friday, November 28, 2008

अश्वत्थामा ने नीति, नियम, मर्यादाओं को तिलांजलि दी

और फिर उसने अपने पूरे के पूरे शरीर के रोंये-रोंये में उत्साह का संचरण किया, फिर विचार करने लगा कि अपने इस काम को अंजाम कैसे दूं? शौनक! वहीं पर जिस पेड़ के वह नीचे था, वहां पर रात में कौओं की बात-चीत को सुना। उसने देखा कि रात में कौये अपने से ताकतवर बाज के घोंसले में चले गये और उसके बच्चों को चट करके खा गये। अश्वत्थामा ने यहीं निश्चय किया, कि पाण्डव बाज की तरह से मुझसे ताकतवर हैं, लेकिन जिस तरह से बाजों की अनुपस्थिति में इन कौओं ने बाज के बच्चों का भक्षण कर लिया। इसी तरह से मैं भी अपने काम को अंजाम दूँ। महात्मा पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ में शल्य के शिविर में चले गये थे। तब वहाँ पर दुष्ट अश्वत्थामा ने सारे के सारे नीति, नियम, मर्यादाओं को तिलांजलि देकर उन पाण्डवों के शिविर में प्रवेश किया, जहां पर द्रोपदी के पाँच पुत्र अपने मुकुटों को सिर पर बाँधकर गहरी नींद में सो रहे थे। उसने उन पाँचों चमकते हुये राजकुमारों के सिरों को काट लिया। शौनक! फिर यहाँ पर उसने राजकुमारों के सिरों को दुर्योधन को भेंट किया। दुर्योधन की आत्मा चीत्कार कर उठी। उसका हृदय दहल उठा। उसकी आँखों से क्रोध और खून के आंसू बरसने लगे। उसने कहा कि अरे अधम ब्राह्मण! तूने ये क्या किया? मैंने तुझे अपने शत्रुओं के सिर कत्ल करके लाने के लिये कहा था, अपने वंश का नाश करने के लिए तुझे नहीं कहा था। कुरु के वंश में धृतराष्ट्र के अंश-वंश से तो कोई जिन्दा बचा नहीं लेकिन कुरु के वंश में पाण्डु के ये पौत्र तो थे। तूने तो हमारे महाराज कुरू के वंश के अन्तिम चिराग को समाप्त कर दिया। तू मेरी आंखों के सामने से चला जा। वो आत्मग्लानि में सिर धुनते हुये इस संसार से विदा हो गया।

Thursday, November 27, 2008

तमोगुण से आदमी की बुद्धि काम करना छोड़ देती है

उस समय दुर्योधन के सामने, उसका गुरुपुत्र अश्वत्थामा अपने प्रिय स्वामी दुर्योधन को इस असहाय दशा में देख कर तिलमिला गया। अश्वत्थामा ने कहा है कि हे राजन! अगर आप समझते हैं कि आपका जीवन इस प्रतिशोध की अग्नि में नहीं गिरे, नहीं टूटे तो अभी युद्ध बन्द नहीं हुआ है, अभी घोषणा नहीं हुई है। आप भी जिन्दा हैं और आपकी सेना भी जिन्दा है। इसलिये युद्ध अभी बन्द नहीं है, युद्ध अभी चालू है, आप मेरा तिलक करें और मैं पाँचों पाँण्डवों के सिर कत्ल करके आपके चरणों में डाल दूँगा, तब आप चैन से मर सकेंगे। क्योंकि क्षत्रिय योद्धा का यदि शत्रु जीवित रहे और वो अपमान की आग में झुलसे तो उसको अच्छे लोकों की प्राप्ति नहीं होती। दुर्योधन ने अश्वत्थामा का तिलक किया, सेनापति बनाया। अश्वत्थामा विचार कर रहा था कि किस तरह से पांचों पाण्डवों के सिर कत्ल करके लाऊँ। शौनक! अंधेरी रात थी, अश्वत्थामा ने वहां बैठकर रुद्र भगवान का ध्यान किया। रुद्र- तमोगुणी शक्ति, रुद्र का ध्यान क्यों किया? तमोगुण से आदमी की बुद्धि काम करना छोड़ देती है, विचार करना छोड़ देती है। जैसे क्रोध आता है तो विचार विदा हो जाते हैं। काम करने की शक्ति विदा हो जाती है। इसलिए तमोगुण में पूरी शक्ति से काम कराने की जो शक्ति है, तमोगुण में जो कार्य कराने की, विचार कराने की, जो शक्ति है, उसको रुद्र कहते हैं। रुद्र माने रोदन। गति देने वाला जो इस जड़ प्रकृति को गति दे रही है, वो आत्मा ही रुद्र है।

Wednesday, November 26, 2008

दुर्योधन के जाँघ में भीमसेन ने गदा मारी थी

परीक्षित महाराज के जन्म-कर्म के विषय में प्रश्न पूछने पर सूतजी ने शौनक आदि रिषियों को बतलाने लगे, कि जिस समय महाभारत का युद्ध हो चुका था, हे शौनक! उस समय पर दुर्योधन के जाँघ में भीमसेन ने गदा मारी थी और उसके सिर पर लात मारी थी, इसलिये वो पश्चाताप की आग में झुलस रहा था। अपने स्वाभिमान के घेरने पर चीत्कार कर रहा था। रात्रि का समय हो चला था। नजदीक तालाब और घनघोर जंगल में उसकी चीखों और चिल्लाहट के सिवा अगर कुछ सुनाई देता, तो पक्षियों की भयभीत करने वाली भयंकर आवाजें और कभी हिंसक जीवों की भयंकर आवाजें। पूरा का पूरा जो जंगल था, उन आवाजों से जैसे कि भयभीत होकर कर दहल रहा हो। हवायें भी भयावयी और डरावनी थीं और तालाब में जो लहरें उठ रहीं थीं, वो किसी और चीज का संकेत करतीं थीं।

Monday, November 24, 2008

संयम से रहे तो निश्चित ही उसको कथा के फल की प्राप्ति होती है।

जहाँ बिना धन्धे की निःशुल्क ज्ञान की धारा चलती हो, मैं वहाँ जरूर आऊँगा। इसलिये कथा वही है जिसमें धन्धे का मतलब नहीं हो। इस कथा को नियमपूर्वक सुनना चाहिए। नियमों के बारे में कहा गया है कि जो इस कथा को सुने तो ब्रह्म मुहूर्त में जागे, नहाये, धोये, स्नान करे, माता-पिता, गुरू, सन्त, ब्राह्मण, गऊ की सेवा करे। दान करे, व्यास गद्दी की परिक्रमा करे। कथा स्थल पर होने वाले दैनिक हवन में आये और आहुति दे। जो आचार्य हवन कराते हैं, उनको नित्य दक्षिणा जरूर दे। बिना दक्षिणा दिये हवन का फल नहीं बनता। कथा प्रारम्भ होने से पहले आये और कथा में से पीछे जाये। कथा में खाली हाथ नहीं जाये, दान पुण्य अवश्य करना चाहिये। खाली हाथ न आये और न खाली हाथ जाये। प्रसाद लेकर के जाना चाहिये। पहले आये और पीछे जाये। पवित्र रहे, फालतू डोलना, फालतू बोलना, फालतू खान-पान इनको छोड़ दे। जिन वस्तुओं से बदबू आती है, उन चीजों को नहीं खाये जैसे- प्याज है, लहसुन है। जिनसे वासना भड़कती है, सैक्सुअल्टी बढ़ती है, उन वस्तुओं को कथा श्रवण के दौरान ग्रहण न करे। प्याज है, लहसुन है, बैंगन है, गुड़ है, तेल है, खटाई है, चिकना है, चुपड़ा है इसको छोड़ दे। नियम से कथा सुने। गुरू मन्त्र का जाप करता हुआ ब्रह्मचर्य से रहे, संयम से रहे तो निश्चित ही उसको कथा के फल की प्राप्ति होती है। यह नारद जी को उन्होंने सप्ताह श्रवण की विधि और महात्म्य कहा। फिर नारद जी ने उनको विदाई दी ।

Saturday, November 22, 2008

जहाँ धन्धा होगा, वहाँ मैं नहीं आऊँगा।

.............. सुखदेव भी पधारे। भगवान, प्रहलाद, उद्धव, अर्जुन आदि को लेकर पधारे और कहा कि जहाँ कहीं भी पवित्र कथा होगी, वहाँ मैं आऊँगा। जहाँ धन्धे की कथा होगी, वहाँ तो धन्धा ही आयेगा, धन्धे खोर ही आयेंगे, मैं नहीं आऊँगा। जैसे कुछ लोग कथा करते हैं, सत्संग करते हैं और चूरन बेचते हैं, चटनी बेचते हैं। कहते हैं कि हमारा च्यवनप्राश खाओ, हमारी चटनी खाओ, हमारी माचिस लो, हमारी बीड़ी पीओ। बीड़ी भी बनाते हैं। हमारा पैन लो, हमारी स्लेट लो, हमारी घड़ी ले लो, हमारी ये दवाई ले लो- हमारी ये दवाई ले लो।

जहाँ धन्धे का मतलब होता है, वो कथा नहीं, वो मजमा होता है। एक व्यथा होती है। वो धर्मात्मा है ही नहीं। वो तो धनमात्मा हैं। .... तो जहाँ धन्धा होगा, वहाँ मैं नहीं आऊँगा।

Thursday, November 20, 2008

बोलो- लीला विलास महाराज की जय

हमने अपने चरित्र पर नहीं तन को सजाने पर ध्यान दिया चरित्र पर नहीं चमड़े और कपड़े पर ध्यान दिया। शास्त्रों में चरित्र संवारने की बात कही गई है उसे भूल गए। टी.वी. पर, फिल्मों में जो बात आती है वहीं ध्यान रह गई टी.वी. पर बात आती है, चमड़े और कपड़े की, दमड़ी की वही ध्यान रही बाकी चरित्र को संवारने की बात जो शास्त्रों में कही, संतों ने कही वह भूल बैठे और जीवन गँवा दिया।

Wednesday, November 19, 2008

इस तन को सजाने में जीवन को बिगाड़ लिया

"इस तन को सजाने में जीवन को बिगाड़ लिया''-२

तेरी मांग रहे सूनी,ऐसा श्रृंगार किया-२

इस तन को सजाने में..................................।

सावन में पपीहे ने क्या राग सुनाए हैं-२

आंधी तूफां आए बादल भी छाए हैं

एक बूंद भी पी न सका, ये क्यूँ न विचार किया।

तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया

इस तन को सजाने में................................।

इस धूल के कण-मन को, कीचड़ क्यों बनाते हो?

लहराते चमन दिल को, बीहड़ क्यों बनाते हो?

क्यों ओस में रंग भर कर तस्वीर को फाड़ दिया?

तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया

इस तन को सजाने में..............................।

रंग ढंग सब बिगड़ गया, सतसंग से बिछड़ गया।-२

नर होकर नरक गया, खुद से ही झगड़ गया।

बुद्धि दी ईश्वर ने, फिर भी ना सुधार किया।

तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार

इस तन को सजाने में.....................।

ग्रन्थों को पढ़कर भी अभिमान में डूबा है-२

अपने ही पुजापे में पूजा को भूला है।

रुद्र, अंधेरों में क्यूँ नहीं उजियार किया?

तेरी मांग रहे सूनी ऐसा श्रृंगार किया।

इन तन को सजाने में....................।

Tuesday, November 18, 2008

कपिल ने अपनी माँ दिया ज्ञान

फिर उनको नौ कन्याऐं हुईं, नौ कन्याओं का विवाह उन्होंने नौ रिषियों के साथ किया। इन्हीं में एक अनुसूया थीं, जो अत्रि रिषि को ब्याही गईं। जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं को पुत्र रूप में प्राप्त किया। इनमें से विष्णु ने दत्तात्रेय भगवान के रूप में अवतार लिया। ब्रह्माजी चन्द्रमा नाम के रिषि बने तथा शिव जी दुर्वासा नाम के रिषि बने। परीक्षित, दसवें कपिल का अवतार हुआ। ब्रह्माजी ने देवहूति से कहा कि बेटी, तुम्हारे गर्भ से जो कपिल अवतार जन्म लेंगे वो सांख्य के प्रणेता होंगे तो तुम घर में रह कर ही उनसे सांख्य का उपदेश लेकर ज्ञान प्राप्त कर सकती हो। देवहूति ने उनकी बात को ध्यान में रखा। साधु की और शास्त्र की बात को ध्यान में रखने से ही आदमी ज्ञानी बनता है। लेकिन हमें शास्त्र की और संतों की बात याद नहीं रहती इसीलिए तो हम भटक गए हैं। क्यों भटक गए हैं, इसलिए भटक गए क्योंकि न तो हमने ज्ञान को महत्व दिया न शास्त्रों का अध्ययन किया और न संतों की बातों को सुनने की फुरसत है।

Monday, November 17, 2008

निष्कपट बुद्धि तथा निश्छल कर्म से सम्बन्ध सुन्दर बनता है।

पति को बढ़िया कपड़े तथा बढ़िया श्रृंगार से नहीं रिझाया जा सकता। बढ़िया कपड़े पहनना, श्रृंगार करना ये तो नाचने गाने वाली भी कर लेती हैं, पर वो रिझाने वाली नहीं होती। प्यार से और धर्म से जीत जो होती है तो मजबूत होती है, टिकाऊ होती है। बिन्दुसर में स्नान करने के बाद वहाँ दिव्य कन्याओं ने उन्हें दिव्य आभूषण तथा वस्त्र धारण करवाए। परीक्षित, दिव्य माने पवित्र आचार विचार, पवित्र आचार विचार से पत्नी बनती है। सुन्दर कीमती वस्त्र आभूषण धारण करने से नहीं। तो दिव्य का अर्थ पवित्र आचार विचार।

दिव्य वसन भूषण पहिराए। जे नित हू तन अंगन सुहाए॥

सुन्दर और निष्कपट बुद्धि तथा निश्छल कर्म। हे! परीक्षित इसी से पति पत्नी का सम्बन्ध सुन्दर बनता है।

Sunday, November 16, 2008

जहाँ प्रेम नहीं वहाँ कुछ नहीं रह जाता


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

दोनों का विवाह हुआ। बारह वर्षों तक देवहूति ने उनकी सेवा की। उसके उपरान्त कर्दम रिषि ने उनके लिए एक विमान बनाया। विमान मतलब जहाँ न ऊँच हो न नीच हो। विमान का अर्थ ये मत समझ लेना कि कोई हवाई जहाज बनाया। विमान बनाने का अर्थ- ऊँच-नीच से मुक्त होना- जहाँ समानता हो बराबरी हो। जहाँ मान-सम्मान बीच में आ जाए वहाँ पति-पत्नी का रिश्ता नहीं रह जाता। विमान माने प्यार। पति-पत्नी के हृदय में प्रेम है तो गृहस्थ है। जहाँ पति-पत्नी की अपनी-अपनी अकड़ है वहाँ गृहस्थ है ही नहीं वहाँ तो सिर्फ नाटक है नौटंकी है। तो विमान वह जहाँ कोई भी अभिमान पति को नहीं है, कोई भी अभिमान पत्नी को नहीं है। उसमें विहार करते हुए फिर उन्होंने बिन्दुसर में स्नान करने की आज्ञा दी। ऊँच नीच नहीं होनी चाहिए पति पत्नी के बीच। प्यार हो दोनों के बीच तो धर्म स्वयं ही बन जाता है और जहाँ प्रेम नहीं वहाँ कुछ नहीं रह जाता अधर्म ही अधर्म बन जाता है। या समझिए कि प्यार होगा तो धर्म जरूर होगा या फिर यदि धर्म है तो प्यार जरूर होगा। यदि पति पत्नी के बीच कोई शक-शुबह है तो धर्म नहीं है, वहाँ पर, क्योंकि प्यार नहीं है तकरार है। वहाँ सिर्फ नाटकबाजी है। धर्म के साथ प्यार और प्यार के साथ धर्म होता है। बिन्दुसर-प्यार होगा तो धर्म होगा। प्यार ही बिन्दुसर है और धर्म ही बिन्दुसर है।

योग से व्यक्ति का कल्याण होता है और भोग से विनाश

महर्षि कर्दम पर्वत के ऊपर तपश्चर्या करते थे। भगवान के आदेश पर उन्होंने मनु की पुत्री देवहूति से विवाह किया। लेकिन उन्होंने मनु के सामने एक शर्त रखी, कि मनुष्य का जन्म मुक्ति के लिए मिला है। गृहस्थ होता है केवल वंश चलाने के लिए और वंश चलता है एक संतान से। तो जब भी एक पुत्र हो जाएगा मैं सन्यास ले लूँगा। यदि तुम्हारी पुत्री को यह मंजूर है तो मैं उससे विवाह करने को तैयार हूँ। देवहूति ने कहा मुझे भी पति चाहिए पतित नहीं चाहिए। पति वही होता है जो पत्नी को भोग से योग की तरफ ले जाए। योग से व्यक्ति का कल्याण होता है और भोग से विनाश होता है।

Friday, November 14, 2008

यदि माँ भूतनी होगी तो भूत ही पैदा होंगे।

अच्छी माँ के अच्छी सन्तान होती है, दुष्ट माँ के दुष्ट सन्तान होती है। अच्छी माँ के दुष्ट सन्तान नहीं हो सकती। सन्तान के स्वभाव से ही माँ के स्वभाव का ऑकलन करना चाहिए। खेती होती है तो भूमि के तरीके से ही होती है। जमीन के जैसे परमाणु होंगे वैसी ही फसल होती है। माँ देवी होगी तो देवता पैदा होंगे और यदि माँ भूतनी होगी तो भूत ही पैदा होंगे। ये मैंने तुम्हें बताया। परीक्षित महाराज कहने लगे, कि कृपा कर मुझे महर्षि कर्दम के जन्म कर्म के विषय में, उनके गृहस्थ के विषय में बताइए। तो कहा कि । --------इसके बारे में कल पोस्ट करेंगे।

Thursday, November 13, 2008

भक्त प्रह्लाद का जन्म

रिषि कश्यप बोले, पत्नी वो है जो अपने नहीं पति के विषय में सोचती है। उसके भले के विषय में सोचती है। पर तूने दिति ने मित्र धर्म को, पति व्रत धर्म को कलंकित किया है। जा तुझे राक्षस संतान जुड़वाँ पैदा होंगी। जो स्त्री अपने पति का इस्तेमाल अपने मतलब के लिए करती है, उसके दुष्ट संतान पैदा होती है. और जो स्त्री अपने पति को सुख देती है, उसके दुष्ट संतान पैदा हो ही नहीं सकती। आज कल हिन्दुस्तान में ५२ प्रतिशत जवान लोग तो हैं, पर इनमें से ९८ प्रतिशत शैतान ही निकलेंगे बाकी २ प्रतिशत ही देव निकलेंगे। दिति ने पैर पकड़ लिए तो रिषि बोले कि तेरे बच्चे तो राक्षस होंगे पर पोते जो होंगे वो भक्त होंगे। इस शाप के परिणामस्वरूप जय और विजय दिति के गर्भ में सौ वर्षों तक रहे फिर हिरण्याक्ष व हिरण्यकश्यप के रूप में इनका जन्म हुआ। हिरण्यकश्यप का पुत्र हुआ प्रहृलाद जो भक्त शिरोमणि बना।

Tuesday, November 11, 2008

इंसान वह जो अपने बजाय दूसरे के दुःख से दुखी हो.

जो पत्नी अपने पति के दुःख से दुःखी नहीं हो तो उसे देखने से भी पाप लगता है। वो पति जो पत्नी को दुःख दे और उसके दुःख से दुःखी न हो उसे भी देखने से पाप लगता है। पत्नी वो है जो अपने दुःख से नहीं पति के दुःख से दुःखी है, पति वो है जो अपने दुःख से नहीं पत्नी के दुःख से दुःखी है। बेटा वो है जो अपने नहीं वरन अपने माँ बाप के दुःख से दुःखी है। माँ बाप वो हैं जो अपने नहीं सन्तान के दुःख से दुःखी होते हैं। दिव्या रुद्र कहते हैं की मनुष्य को अपने दुःख से कभी भी दुखी नहीं होना चाहिए।

Monday, November 10, 2008

श्रीमद भागवत कथा अंक 20

साधु के विरोधी हो गए, धर्म भ्रष्ट हो गए पब्लिक के विरुद्ध हो गए। पब्लिक यानि साधु। फिर पब्लिक उनको बद्दुआएं देती है। जब नेता बिकता है तो पब्लिक बद्दुआएं देती है और नेता का विनाश होता है। कई जन्म खराब होते हैं इन नेताओं के। एक बार महर्षि कश्यप संध्यावन्दन को जा रहे थे, परीक्षित और दिति ने उनका दुपट्टा पकड़ लिया, भोग के लिए। जब उनके गर्भ स्थिर हुआ तो महर्षि कश्यप बोले, अरी दुष्ट स्त्री! पत्नी वो होती है जो पति को धर्म के मार्ग पर लगाए। उसे अपवित्र होने से बचाए। पति को पाप से बचाकर धर्म के मार्ग पर लगाने के लिए धर्म पत्नी होती है। पति मित्र होता है, पत्नी मित्र होती है मित्र वो जो मित्र का भला करे और जो मित्र अपने मतलब के लिए मित्र को अधर्म के मार्ग पर ले जाता है। उसका खुद का पतन होता है, नरक को जाता है और उसको देखने से भी पाप लगता है-

जेन मित्र दुःख होहिं दुखारी, तिनहिं विलोकन पातप भारी।

Sunday, November 9, 2008

श्रीमद भागवत कथा अंक 19

सापत ताड़त पुरुष कहन्ता। विप्र पूजि अस गावहि सन्ता॥

इसलिए सन्त के तो चरण ही पकड़ने चाहिए। विरोध करने में तो विनाश है। ये जय विजय इन्हीं का पतन हुआ। बड़े समझने की बात है कि जब तक आदमी दुःखी होता है, तब तक तो ठीक रहता है पर जब उसे थोड़ा बहुत पूछा जाने लगे, मान मिले तभी वह भ्रष्ट होता है- जय और विजय। जय होने लगे कहीं पुजने लगे, तभी आदमी भ्रष्ट होने लगे। जय जयकार होने में ही भ्रष्ट होते हैं। जब तक कोई नहीं पूछता, तब तक आदमी सही काम करता है। जब नेता जी पुजने लगते हैं- जय-जय होने लगती है तो नेताजी बिकने लगते हैं। गलत काम करने लगते हैं। जहाँ पब्लिक ने उन्हें नेता मान लिया तो नेताजी पब्लिक के नाम पर बिकने लगते हैं चाहे पहले जब कोई नहीं पूछता था तो पब्लिक के लिए काम करते थे, पर नेता बन कर बिकने लगे। आज कल लोग करते क्या हैं? अगर किसी को बनना है तो हर जाति से वोट नहीं लेने। उस जाति के एक नेता को खरीद लिया। जैसे बघेलों का एक नेता है। उसे खरीद लिया दस बीस करोड़ में जाटों का ब्राह्मणों का एक नेता है, उसको खरीद लिया। वो जानते हैं कि ये एक नेता अपनी जाति के कितने ही आदमियों को leed कर रहा है तो उसे खरीद लो। आज कल आदमी नहीं बिक रहा है। आज कल बड़े-बड़े नेता बिक रहे हैं। जैसे ही जय हुई विजय हुई नेता जी धड़ाम से गिर गए। डेढ़ पैसे के नहीं रहे।

श्रीमद भागवत कथा अंक 18

प्रश्न यह है कि ये हिरण्याक्ष हुआ कैसे? ये नेता भ्रष्ट हुए कैसे? एक बार सनकादि ऋषि भगवान के द्वार पर मिलने गए। बैकुण्ठ के सातवें द्वार पर पहुँचे। वहाँ के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें बच्चे जानकर रोक दिया और कहा कि वहाँ भगवान शयन कर रहे हैं और ये वहाँ जाकर अशान्ति करेंगे, उनके शयन में बाधा उत्पन्न करेंगे। अब सनकादि ऋषि को क्रोध आ गया और उनसे बोले कि तुम दोनों राक्षस हो क्योंकि जो भक्त और भगवान के मिलने में रोड़ा अटकाए, वह राक्षस ही होता है। जो भगवान और सन्त से विरोध करे, वह असुर होता है। जाओ, तुम राक्षस बनोगे। यहाँ रहने के लायक नहीं हो। जय विजय ने उनके चरण पकड़ लिए। सनकादि ऋषि बोले, "तीन जन्म तक तुम राक्षस बनोगे, ताकतवर बनोगे, तपस्वी बनोगे, मगर भगवान के हाथ से तुम्हारी मृत्यु भी होगी और चौथे जन्म में फिर यहाँ के द्वारपाल बनोगे।'' साधु क्रोध करे तो भी चरण पकड़ने में ही खैर है, साधु गाली दे, चाहे श्राप दे तो भी चरण पकड़ने में ही खैर है। साधु से तर्क और बराबरी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो समझो नाश है, चाहे फिर वह त्रिलोकपति रावण ही क्यों न हो। विभीषण को अर्थात्‌ अपने छोटे भाई को लात मारी तो नाश हो गया उसका।

Saturday, November 8, 2008

श्रीमद भागवत कथा अंक 17

महाराज! सबके सब जितने भी राक्षस हैं। सब धरती को अंधेरे में पाताल में ले गए हैं। धरती के मालिक बन गए हैं, मन्त्री, राजा, महाराजा बन गए हैं। ब्रह्माजी के विचार से फिर नासिका के द्वारा परमात्मा प्रकट हुए। देखते ही देखते वे अंगुष्ट प्रमाण वाराह शिशु से बहुत विशाल आकृति लेकर गर्जना करने लगे। तो सब देवताओं को प्रसन्नता हुई तथा राक्षसों को कम्पन हुआ। इस प्रकार वाराह भगवान प्रकट हुए। वाराह का अर्थ होता है पवित्र कर्म को बढ़ावा दे, पर आज के नेता कैसे हो गए हैं? आज के नेता काहे के नेता जो भ्रष्टाचार, लूट खसोट तथा धन्धे खोरी को बढ़ावा देते हैं। तो दो तरह के नेता हैं, एक वाराह भगवान हैं और एक आज के नेता जो अपने घर को सोने से चमका रहे हैं तो हिरण्याक्ष नेता जी हैं। एक तो जो दुनियाँ की खुशी के लिए अपने प्राण संकट में डाल रहे हैं। तो वाराह भगवान ने वहाँ उससे भयंकर युद्ध किया पर वह पकड़ में नहीं आया तो उसकी कनपटी पर जोरदार थप्पड़ मारा, जिससे वो मर गया, उसकी ज्योति भगवान वाराह में प्रवेश कर गई। उन्होंने धरती को मुक्त किया। बोलिए "श्री वाराह भगवान की जय।'' जब तक आदमी छुप करके कुकर्म करने की आदत नहीं छोड़ेगा तब तक देश का और धरती का विकास नहीं होगा। अगर सारे के सारे नेताओं के यहाँ छापे मार दिए जाएं तो देश की गरीबी को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। लेकिन जो छापे मारने वाले हैं वो भी राक्षस हैं जिनके यहाँ छापे मारना है, वे भी राक्षस हैं। अलग-अलग कुर्सी के राक्षस हैं। संसद में जाकर सबके सब एक साथ। और जनता को लड़वाने-मरवाने और उनकी जेब पर ीवसक करने के लिए यहाँ भाषण बाजी। ये मर गया तो वाराह प्रकट हो गए। )त्‌ कर्म तभी बहेगा, जब हम अपने दिमाग़ की चमक को अंधेरे के धर्म को छोड़ देंगे, तभी धरती स्वर्ग बन सकती है। छुपकर करने की प्रवृत्ति छोड़ दें नेता तो देश-धरती सुधर जाए। सब नेता दुबक कर छुपकर कुछ न कुछ अवश्य करते हैं। इनका पब्लिक के सामने चेहरा कुछ और है, अंधेरे में असली चेहरा कुछ और। भगवान कहते हैं असली चेहरा ही सामने आना चाहिए। वही नेता है, उसी से धर्म और धरती दोनों आबाद होते हैं।